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zuckerberg success story in hindi
आज भारत में सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाला Social Media Platform फेसबुक है हर कोई चाहे वह कोई व्यक्तिगत व्यक्ति हो या संस्थान फेसबुक
में अपना अकाउंट बनाये हुए हैं। क्या आपने कभी सोचा है की इसे किसने बनाया होगा। आज
की तारीख में फेसबुक केवल लोगों को जोड़ने का ही नहीं, बल्कि ब्रांड एवं संस्थानों के लिए अपने ग्राहकों के साथ सीधे संपर्क करने का
भी एक मजबूत माध्यम बन गया है।
वर्तमान में फेसबुक दुनियाभर में कितना लोकप्रिय
है शायद यह बात बताने की आवश्यकता नहीं है। आज की इस पोस्ट मे हम फेसबुक के संस्थापक की सफलता की कहानी को बताने वाले हैं। ताकि आप भी पोस्ट
पढ़ने के बाद जान सकें की दुनिया का सबसे युवा अरबपति मार्क जुकरबर्ग बना तो आखिर कैसे बना?
Who is Mark Zuckerberg brief biography
मार्क जुकरबर्ग का जीवन परिचय
पूरा नाम– मार्क इलियट जुकरबर्ग, जन्मतिथि – 14, मई 1984 , जन्मस्थान – वाइट प्लेन्स, न्यू यॉर्क, अमेरिका, पिताजी का नाम – एडवर्ड
जुकरबर्ग, माता का नाम– करेन केम्प्नेर, बहने- अरिल्ले, रैंडी, डोना, शिक्षा– हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से ड्रॉपआउट, प्रसिद्धि मिली – फेसबुक के
संस्थापक के रूप में, कंपनी में पद – मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO), वैवाहिक स्थिति – विवाहित 2012 से, पत्नी का नाम – प्रिसिला
चान, बच्चे – 2 बेटियाँ (मक्सिमा चान
जुकरबर्ग, आगस्ट चान जुकरबर्ग)
मार्क का बचपन
आज कोई कितना भी बड़ा आदमी क्यों न हो, लेकिन उसकी शुरूआत बचपन से
होती है। फेसबुक के संस्थापक का पूरा नाम मार्क इलियट जुकरबर्ग है और इनका जन्म 14 मई 1984 को न्यूयार्क के उपनगर
डॉब्स फेरी में हुआ था। ये चार भाई बहिन में से दुसरे नंबर के थे लेकिन इनके अलावा
बाकी तीनों इनकी बहिनें हैं। मार्क अपने माता पिता के इकलौते बेटे थे। इनके माता
पिता दोनों डॉक्टर हैं इनके पिता दांतों के डॉक्टर तो माता एक मनोचिकित्सक है।
इनके पिता इनके घर के निकट ही अपनी दन्त
चिकित्सा की प्रैक्टिस करते थे और इनके अलावा इनकी तीनों बहिनों एरियल, रैंडी और डोना का भी पालन
पोषण डॉब्स फेरी, न्यूयॉर्क में ही हुआ था।
कहा यह जाता है की मार्क की जब प्राथमिक शिक्षा शुरू हुई तभी से इन्हें
प्रोग्रामिंग में बेहद दिलचस्पी थी। और इन्हें अपनी उम्र के दस साल में इनका पहला
कंप्यूटर इंटेल 486 इनके पापा ने इन्हें खरीदकर
दे दिया था।
प्रोग्रामिंग में इनकी रूचि को देखते हुए ही
इनके पापा ने इन्हें Atari
BASIC प्रोग्रामिंग सिखाई
थी। और इस प्रोग्रामिंग को सीखकर महज 12 साल में मार्क ने एक मेसेंजर बना दिया था जिसे ZuckNet के नाम से जाना गया। इस मेसेंजर की मदद से इन्होने घर और दंत कार्यालय में उपलब्ध
कंप्यूटरों को जोड़ा और इनके बीच सन्देश भेजने को आसान बनाया।
मार्क के पिता ने उसके बाद इस ZuckNet मेसेंजर को अपने ऑफिस के सभी कंप्यूटर में इंस्टाल करवाया और इसकी
मदद से ही रिसेप्शनिस्ट किसी रोगी के आने की सूचना उन तक पहुँचा देती थी। मार्क को बचपन से ही गेम डेवलप करना और कम्युनिकेशन टूल
बनाना पसंद था और वे ऐसा करते भी थे।
लेकिन तब वे ऐसे कार्य सिर्फ मौज मस्ती या आनंद
लेने के लिए करते थे। कंप्यूटर और प्रोग्रामिंग में अपने बेटे की रूचि को देखते
हुए उनके पिता ने उनके लिए एक कंप्यूटर सिखाने वाले शिक्षक को भी नियुक्त किया
जिसने मार्क को अपने अनुभव से प्राप्त कुछ निजी टिप्स भी बताये।
मार्क की कोडिंग में रूचि
कहा यह जाता है की जब मार्क हाईस्कूल की पढाई कर
रहे थे, उसी दौरान उन्होंने एक
आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस मीडिया प्लेयर Synapse अपनी कोडिंग कौशल से लिखा। जिसे MP3 प्लेलिस्ट के लिए बनाया गया
था यह यूजर की प्राथमिकताओं का अध्यन करके प्लेलिस्ट से उसी गाने का अनुमान लगाने
में सक्षम था जो वह यूजर वास्तव में सुनना चाहता हो।
उस समय की बड़ी टेक कंपनी Microsoft और AOL की रूचि Synapse Media Player को हासिल करने की थी। इसलिए
उन्होंने Mark Zuckerberg
को हजारों डॉलर का प्रलोभन
भी दिया। लेकिन युवा प्रतिभा ने उनके इस निमंत्रण को बड़ी विनम्रता से अस्वीकार्य
कर दिया।
उसके बाद मार्क ने न्यू हैम्पशायर में स्थित
स्कूल एकेडमी ऑफ फिलिप्स एक्सेटर में अध्यन करना शुरू किया। उन्होंने वहाँ पर
विज्ञान और साहित्य की पढाई की और अच्छे परिणामों के साथ पास भी हुए ।
सिर्फ यही नहीं यहाँ पर उन्होंने तलवारबाजी का
भी अध्यन किया और तलवारबाजी में वे इतने पारंगत हो गए थे की उन्हें वहाँ पर
तलवारबाजी का कप्तान बना दिया गया। लेकिन इन सबके बीच Mark Zuckerberg को जिस चीज से सबसे ज्यादा
लगाव था वह थी कोडिंग यानिकी प्रोग्रामिंग।
सन 2002 में इन्होंने एकेडमी ऑफ फिलिप्स एक्सेटर से स्नातक पास किया और उसके बाद आगे
के अध्यन के लिए हार्वर्ड विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। इस कैंपस में उन्होंने
अपने अध्यन के दुसरे वर्ष तक एक सॉफ्टवेयर डेवलपर के रूप में काफी अच्छा नाम बना
लिया था। इसी दौरान उन्होंने एक प्रोग्राम जिसका नाम CourseMatch था लिखा। यह सॉफ्टवेयर
छात्रों को अन्य यूजर की कोर्स की लिस्ट के आधार पर विषय चुनने में मदद करता था।
जब Mark Zuckerberg ने मौज मस्ती के लिए FaceMash बनाया
कहते हैं की पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते
हैं, यह कहावत मार्क जुकरबर्ग पर
बार बार चरितार्थ हो रही थी। यह वही समय था जब मार्क हार्वर्ड विश्वविद्यालय में
अध्यनरत थे। सन 2003 में गर्मियों की एक शाम थी
जब जुकरबर्ग अपने हॉस्टल में थे लेकिन उन्हें उस रात नींद नहीं आ रही थी।
तो उन्होंने बैठे बैठे ही एक ऐसी साईट बनाने का
विचार किया जिसमें वे किन्हीं दो लड़कियों की फोटो यूजर को दिखाकर पूछें की इन
दोनों में हॉट कौन है । और उन्होंने इस पर काम भी शुरू कर दिया जब बात लड़कियों के
फोटो की आई तो उन्होंने विश्वविद्यालय के उस डाटाबेस को हैक करने का फैसला किया
जहाँ छात्र/छात्राओं की प्रोफाइल फोटो
अपलोड थी।
और उसी डाटाबेस से फोटो उठाकर यूजर के सामने रखा
जिसमें यूजर को बताना था की दोनों में हॉट कौन है। उनका यह प्रोग्राम बेहद कम समय
में ही हार्वर्ड विश्वविद्यालय में काफी लोकप्रिय हो गया। और उस साईट पर विजिटर की
संख्या बढ़ गई। इसके चलते एक समय वह भी आया जब उस साईट पर इतने ज्यादा लोग आ गए की
सर्वर ओवरलोड के कारण क्रेश हो गया।
इसके बाद जैसे ही विश्वविद्यालय प्रसाशन को यह
बात पता चली तो Mark Zuckerberg को कंप्यूटर हैकिंग
सम्बन्धी समिति के आगे प्रस्तुत होना पड़ा । उस समय उनके इस काम के लिए किसी ने भी
उन्हें शाबाशी नहीं दी, बल्कि उनके खिलाफ
अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई। ताकि कोई अन्य छात्र/छात्रा इस प्रकार के काम न
करे ।
लेकिन इस घटना के बाद मार्क को समझ में आ गया था, की इस तरह की चीजें समाज
में कितनी तीव्र गति से फ़ैल सकती हैं । हालांकि आज जब हार्वर्ड प्रसाशन से इस
घटना के बारे में पूछा जाता है तो कोई भी कुछ भी बोलने या इस घटना पर टिप्पणी करने
से इंकार कर देते हैं।
फेसबुक की उत्पति
यह कहानी तब की है जब मार्क
ने FaceMash भी नहीं बनाया था । FaceMash बनाने से 10 महीने पहले ही हार्वर्ड में
अध्यनरत एक छात्र जिनका नाम दिव्य नरेंद्र था, वे हार्वर्ड के छात्रों के लिए एक सोशल नेटवर्क बनाने के बारे में विचार कर
रहे थे। नरेंद्र का विचार थे की वे एक ऐसे सोशल नेटवर्क की स्थापना करेंगे जिसमें
छात्र हार्वर्ड द्वारा प्रदान किये गए ईमेल एड्रेस को यूजरनेम के तौर पर इस्तेमाल
करेंगे।
इस प्रोजेक्ट में दिव्य नरेंद्र के दो अन्य
पार्टनर टायलर और कैमरून विंकलेवोस थे जो दोनों जुड़वाँ भाई थे। इनके पिता एक
वित्तीय सलाहकार थे इसलिए इन्हें भविष्य के प्रोजेक्ट के लिए पैसों का प्रबंध करने
की चिंता नहीं थी।
दिव्य नरेंद्र अपना यह सोशल नेटवर्क मार्क
जुकरबर्ग से बनाना चाहते थे, और इसके लिए उन्होंने मार्क से बातचीत भी कर ली थी। और कहा था की पहले इसका
नाम हार्वर्ड कनेक्शन रखा जाएगा और बाद में इसे कनेक्ट यू के नाम से जाना जाएगा।
और यह भी बातचीत हुई की इसके यूजर इस प्लेटफॉर्म के जरिये अपनी फोटो, व्यक्तिगत जानकारी और अन्य
लिंक पोस्ट कर पाएंगे।
इसमें मार्क को साईट की प्रोग्रामिंग और अन्य
कोड के जरिये सोशल नेटवर्क सिस्टम को विकसित करने की जिम्मेदारी देने पर विचार
किया गया। इसके बाद दिव्य नरेंद्र, दो जुड़वाँ भाई टायलर और कैमरून विंकलेवोस एवं जुकरबर्ग के बीच एक प्राइवेट
मीटिंग हुई, जिसमें मार्क इनके
प्रोजेक्ट में शामिल होने के लिए सहमत हो गए।
लेकिन जब वे हार्वर्ड कनेक्शन पर काम कर रहे थे
तो उन्हें अपने स्वयं के सोशल नेटवर्क बनाने के बारे में एक शानदार विचार आया । और
उसके तुरंत बाद 04 फरवरी 2004 को मार्क ने TheFacebook.com के नाम से डोमेन रजिस्टर
कराया। और उन्होंने इसे हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अंदर लांच भी कर दिया। इस कार्य
में जुकरबर्ग ने एक नए पार्टनर एडुआर्डो सेवरिन का भी साथ लिया।
इसके बाद जैसे जैसे फेसबुक पर यूजर बढ़ते गए
जुकरबर्ग और इनके साथी एडुआर्डो सेवरिन अन्य प्रोग्रामर को भी काम पर रखते गए।
तीसरे मुख्य प्रोग्रामर के तौर पर इन्होंने अपने पड़ोसी Darren Moskowitz को नियुक्त किया।
फेसबुक में यूजर तो बहुत तीव्र गति से बढ़े
लेकिन कम्पनी कमाई कैसे करे यह स्पष्ट नहीं था। हालांकि सभी संभावना यही जता रहे
थे की फेसबुक भी अपने कमाई के मुख्य स्रोत के तौर पर विज्ञापन को ही तवज्जो देगा।
और बाद में ऐसा हुआ भी क्योंकि फेसबुक में प्रोफाइल बनाते वक्त यूजर को अपनी विस्तृत
जानकारी देनी होती है और फेसबुक उसी जानकारी के आधार पर उससे सम्बंधित विज्ञापन
यूजर को दिखाता है।
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फेसबुक के खिलाफ मुकदमा
शुरूआती दौर में फेसबुक का सफ़र विवादों से भरा
रहा, इसके लांच होने के मात्र छह
दिन बाद दिव्य नरेंद्र और कैमरन और टायलर विंकलेवोस दो जुड़वाँ भाइयों ने Mark Zuckerberg पर उनके बिजनेस आईडिया को
चुराने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा की सन 2003 में उन्होंने Harwardconnection.com
को डेवलप करने के लिए मार्क
को काम पर रखा था।
लेकिन सहमत होने के बावजूद जुकरबर्ग ने उन्हें
काम का रिजल्ट नहीं सौंपा और Harwardconnection.com लिखे गए कोड का इस्तेमाल फेसबुक बनाने के लिए कर दिया।
हालांकि जिस वर्ष मार्क ने लांच किया उसी साल दिव्य नरेंद्र और विंकलेवोस जुड़वाँ
भाइयों ने भी अपना सोशल नेटवर्क लांच किया जिसका नाम ConnectU रखा गया। लेकिन इसके बावजूद
उन्होंने जुकरबर्ग पर आरोप लगाना जारी रखा।
उन्होंने इसकी शिकायत हार्वर्ड प्रसाशन के अलावा
क्रिमसन अखबार में भी की । हालांकि जुकरबर्ग अपनी सफाई में कहते रहे की फेसबुक का
हार्वर्डकनेक्शन से कोई सम्बन्ध नहीं है। लेकिन उनकी सफाई के बावजूद हार्वर्ड विश्वविद्यालय
के एक और छात्र जॉन थॉमसन ने भी उन पर आईडिया चुराने का आरोप लगाया। इसके बाद
अख़बार ने इस खबर को अपने अख़बार में छापने का फैसला किया जिससे जुकरबर्ग बहुत
नाराज हुए।
उसके बाद दिव्य नरेंद्र और विंकलेवोस जुड़वाँ
भाइयों ने जुकरबर्ग के खिलाफ मुकदमा दायर किया, लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया। इसके बाद भी वे लगातार अपनी बात पर अड़े
रहे और फेसबुक के खिलाफ एक और मुकदमा दायर किया, इसके बाद अदालत ने इस मामले की जांच की और पता लगाने की
कोशिश की की क्या वास्तव में कोड चोरी हुए थे या नहीं। लेकिन स्थिति स्पष्ट नहीं
हो पाई और परिणाम भी नहीं आ पाया।
इसके बाद वर्ष 2009 में मार्क जुकरबर्ग को $45 मिलियन राशि कुछ नकद कुछ शेयरों में ConnectU को देने के लिए राजी होना पड़ा। और इस सेटलमेंट के बाद
कोर्ट में मामला बंद कर दिया गया उस समय ConnectU के पास केवल 1 लाख यूजर थे जबकि फेसबुक के पास 150 मिलियन से अधिक यूजर थे। इसके बाद भी विंकलेवोस जुड़वाँ भाइयों ने उनके खिलाफ
यू.एस. कोर्ट ऑफ़ अपील्स में एक
याचिका दायर की, जिस पर पुनर्विचार करने से कोर्ट ने मना कर
दिया।
वह इसलिए क्योंकि दोनों पक्षों के बीच पहले
सेटलमेंट एग्रीमेंट हो चुका था जिसमें यह कहा गया था की दोनों पक्षों के हस्ताक्षर
होने के बाद किसी भी पक्ष को पुनर्विचार याचिका दायर करने का अधिकार नहीं है।
लेकिन इस पर जुड़वाँ भाइयों के वकील का कहना था की वर्ष 2008 में एक कार्यवाही में मार्क
ने कंपनी के बारे में गलत जानकारी पेश की थी।
इसी बात को आधार मानकर 17 मई 2011 में दोनों जुड़वाँ भाइयों
ने अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट में फेसबुक के संस्थापक के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया।
टाइम पर्सन ऑफ़ द इयर 2010 अवार्ड
यह बात वर्ष 2010 की है, जब टाइम पर्सन ऑफ़ थे इयर बनने की दौड़ में लेडी गागा, जेम्स कैमरून और विकीलीक्स
के संस्थापक जूलियन असांजे सहित कई अन्य लोग भी शामिल थे। लेकिन टाइम पर्सन ऑफ़ थे
इयर अवार्ड जीतने में बाजी मारी उस समय के 26 वर्षीय युवा अरबपति जुकरबर्ग ने।
वह इसलिए क्योंकि उस समय तक सोशल साईट फेसबुक
लोगों की पसंद बन गई थी, और दुनिया भर के करोड़ों
लोग इससे जुड़ चुके थे। यही कारण है की टाइम मैगजीन ने उस साल के हीरो के रूप में
जुकरबर्ग को चुना।
उस समय के टाइम मैगजीन के प्रधान संपादक रिचर्ड
स्टेंगल का फेसबुक के बारे में कहना था, की फेसबुक दुनिया का तीसरा सबसे बड़े देश के रूप में सामने आया है और यह अपने
नागरिको यानिकी यूजर के बारे में उतना जानता है जितना किसी भी देश की सरकार अपने
नागरिकों के बारे में नहीं जानती।
मार्क उस दौर में सबसे अधिक लोकप्रिय व्यक्तियों
में शामिल थे। वह इसलिए क्योंकि इन्होने बेहद कम उम्र में अरबपति होने का गौरव
हासिल किया था। इनकी कहानी से प्रेरित होकर ही 2010 में इन पर डेविड फिन्चर ने एक फिल्म ‘’द सोशल नेटवर्क’’ बनाई जिसमें इनके किरदार को
जेसी ईसेनबर्ग ने बेहद बढ़िया ढंग से निभाया था।
2010 से पहले टाइम पर्सन ऑफ़ द इयर का अवार्ड दुनिया के कई प्रतिष्ठित व्यक्ति और
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और बराक ओबामा भी जीत चुके थे।
एक आंकड़े के मुताबिक 2010 में प्रकाशित हुई फोर्ब्स
की अरबपतियों की लिस्ट के अनुसार मार्क जुकरबर्ग की सम्पति $ 4 बिलियन आंकी गई। जबकि वर्ष 2015 तक इन पाँच वर्षों में
जुकरबर्ग की सम्पति 10 गुणा बढ़कर $ 40.3 बिलियन हो गई थी और वे उस
समय दुनिया के अरबपतियों की लिस्ट में सातवें स्थान पर थे।
Mark Zuckerberg का व्यक्तिगत जीवन
दुनिया के सबसे कम उम्र के
युवा अरबपति ने 19 मई 2012 को लम्बे समय से चल रहे
प्रेम प्रसंग के बात अपनी प्रेमिका प्रिसिला चान से शादी कर ली। वर्तमान में दोनों
अपने बच्चों मक्सिमा चान जुकरबर्ग और आगस्ट चान जुकरबर्ग के साथ ख़ुशी ख़ुशी रह
रहे हैं। इनकी पहली बेटी मक्सिमा चान जुकरबर्ग का जन्म 1 दिसम्बर 2015 को हुआ था जबकि दूसरी बेटी
आगस्ट चान जुकरबर्ग का जन्म 28 अगस्त 2017 में हुआ था।
जुकरबर्ग और उनकी जीवनसंगिनी प्रिसिला चान ने
अपने हिस्से के फेसबुक शेयरों का लगभग 99% हिस्सा जो की लगभग $45
बिलियन से अधिक होता है, को अपने चान जुकरबर्ग पहल
के तहत मनवा क्षमता, समनाता और विश्व के विकास
हेतु दान देने का वचन दिया है।
फेसबुक पैसे कैसे कमाता है
फेसबुक की कमाई का मूल
स्रोत विज्ञापन हैं इसके अलावा फेसबुक में खेले जाने वाले खेलों में उपयोग होने
वाली वस्तुओं को खरीदने में लोग जो पैसे खर्च करते हैं वह भी फेसबुक की कमाई का
स्रोत हैं ।
ब्रांड,
व्यक्ति, संस्थान इत्यादि अपने
फेसबुक पेज इत्यादि को और अधिक लोगों तक पहुँचाने के लिए फेसबुक एड चलाते हैं। एक
आंकड़े के मुताबिक फेसबुक की लगभग 85% कमाई विज्ञापनों से और 15% कमाई यूजर द्वारा ख़रीदे जाने वाली डिजिटल उत्पादों के माध्यम से होती है।
How to Create Facebook Page for Business Step by Step in Hindi
अंत
मे,
आशा है की आपको फेसबुक के संस्थापक की यह सफलता
की कहानी काफी लुभावनी और मजेदार लगी होगी। जिस तरह से जुकरबर्ग ने अपनी विपरीत
परिस्थितियों में भी सूझ बुझ और धैर्य बनाये रखा वह काबिले तारीफ है। उनके मानवता
और समानता के प्रति जो भावनाएं इस कहानी के माध्यम से सामने आती हैं, वे हर एक इन्सान को सीख
देने वाली हैं । भले ही हम कितने ही सफल क्यों न हो जाएँ, लेकिन समस्त मानव कल्याण के
लिए हमें सोचना बंद नहीं करना चाहिए।
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